ब्यूरो रिपोर्टः उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव के बाद विधानसभा उपचुनाव (by-election) की रणनीति तय होने लगी है। यूपी विधानसभा की रिक्त 10 सीटों पर जल्द उपचुनाव (by-election) का ऐलान होगा। ऐसे में सभी राजनीतिक दल अपनी-अपनी सीटों को जीतने के लिए जोर आजमाइश में जुट गए हैं। इन्ही दस विधानसभा सीटों में मीरापुर सीट भी शामिल है, जो इस समय चर्चा का विषय बनी हुई है, क्योंकि सभी के सामने एक सवाल है कि मीरापुर सीट पर बीजेपी-रालोद मे पेंच फंसा हुआ है, तो ऐसे में अबकी बार इस सीट को कौन साधेगा।
by-election में मीरापुर सीट पर कौन मारेगा बाजी
इसको लेकर रणनीति बनाई जा रही हैं। आपको बता दे बीजेपी तीसरी बार मीरापुर सीट पर फिर जीत की कोशिश में है। तो वही लोकसभा के परिणामों को देखकर सपा-बसपा-आसपा भी उत्साहित है। ऐसे में अब परिणाम क्या होगा? यह तो आने वाला समय बताएगा। लेकिन सभी दलों और टिकट के दावेदारों ने अपनी-अपनी तैयारी तेज कर दिए हैं। वही मीरापुर विधानसभा सीट (by-election) के इतिहास पर नजर डाले तो यह विधान सभा मुजफ्फरनगर जिले का एक हिस्सा है और बिजनौर लोकसभा के पांच विधानसभा क्षेत्रों में से एक है।
दरअसल इस विधानसभा क्षेत्र में पहला चुनाव (by-election) 2012 में “संसदीय और विधानसभा के परिसीमन आदेश, 2008” के पारित होने के बाद हुआ था। यह सीट साल 2008 में अस्तित्व में आई । वही परिसीमन के बाद 2012 में मीरापुर विधानसभा सीट बनाई गई थी। इससे पहले मोरना के नाम से ये सीट थी। बता दे जानसठ सुरक्षित सीट का कुछ हिस्सा मीरापुर में शामिल किया गया, जबकि अधिकतर हिस्सा खतौली विधानसभा में शामिल हुआ। यही वजह है कि राजनीतिक दल इस सीट से गुर्जर या मुस्लिम प्रत्याशी को तवज्जो देते रहे हैं।
आपको बता दे 2012 में बसपा के टिकट से मौलाना जमील यहां विधायक बने थे। लेकिन 2017 में भाजपा की लहर चली, ओर कांग्रेस-सपा के गठबंधन के प्रत्याशी लियाकत अली ने दमदार मुकाबला किया था, लेकिन 194 वोटों से भाजपा के अवतार भड़ाना जीतकर विधायक बन गए थे। जिसके बाद साल 2022 में मीरापुर सीट से चंदन चौहान पहली बार विधायक चुने गए थे। लेकिन इस बार रालोद ने भाजपा गठबंधन के साथ उन्हें बिजनौर लोकसभा सीट (by-election) से प्रत्याशी बनाया और वह जीतकर संसद भी पहुंच गए।
फ़िलहाल चंदन चौहान के सांसद बन जाने के कारण मीरापुर सीट (by-election) खाली हुई है। जिसके बाद अब इस सीट पर उपचुनाव होना हैं, जिसको लेकर भाजपा के गठबंधन में रालोद हैं। लेकिन कहाँ जा रहा हैं कि कही ना कही रालोद बीजेपी में इस सीट पर पेच फंसा हुआ है। वही बात अगर सपा-काग्रेंस गठबंधन की करे तो, दोनो के बीच सीट शेयरिंग का फार्मूला अभी तक तय नहीं हुआ हैं। उधर चंद्रशेखर भी उपचुनाव (by-election) में ताल ठोककर मायावती के लिए चुनौती बने हुए हैं।
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लेकिन पीछे तो माया भी नही, मायावती ने चंद्रशेखर की चुनौती को मात देने के लिए आजाद समाज पार्टी के खेमे में ही सेंध लगाकर बड़ा संदेश देने का काम किया है. अब इन राजनीती समीकरणों को समझना भी जरुरी हैं, जहाँ इस बार का मुख्य मुकाबला एनडीए व् इंडिया गठबंधन-बसपा व आसपा के बीच होता हुआ नजर आता हैं।