ब्यूरो रिपोर्ट: रामपुर (Rampur) की सियासी पिच पर 47 साल बाद एक बार फिर छह खिलाड़ी चुनावी मैदान में उतरे हैं। इससे पहले 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में भी इतने ही प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतरे थे। उस साल भारतीय लोकदल के राजेंद्र शर्मा को जीत मिली थी। अब देखना यह होगा कि 47 साल बाद जीत की चाबी किसके हाथ लगती है। रामपुर नवाबों का शहर रहा है। नवाबों ने यहां करीब सवा 200 साल तक अपना शासन किया। इसके बाद देश आजाद हुआ तो रामपुर (Rampur) रियासत का विलय स्वतंत्र भारत में हुआ।
स्वतंत्र भारत में रामपुर (Rampur) रियासत के विलय होने के बाद पहली बार 1952 में रामपुर (Rampur) की आवाम ने लोकसभा चुनाव के लिए वोट डाले। शुरुआती दौर में तो प्रत्याशियों की संख्या महज दो-तीन ही हुआ करती थी, लेकिन इसके बाद यह संख्या लगातार बढ़ने लगी। एक दौर ऐसा भी आया जब प्रत्याशियों की संख्या बढ़कर 50 तक पहुंच गई थी। 50 प्रत्याशियों के चुनाव मैदान में उतरने की यह बात 90 के दशक यानि 1996 में हुए चुनाव की है।
Rampur में इस बार छह प्रत्याशियों के बीच होगी टक्कर
पहली बार इतनी बड़ी संख्या में प्रत्याशी उतरे जिससे वोटर भी असमंजस की स्थिति में आ गए थे। मौजूदा वक्त में जो चुनाव हो रहे हैं उसमें प्रत्याशियों की संख्या महज छह है,जबकि इससे पहले इतनी संख्या 1977 के चुनाव में ही थी। यानि 47 साल बाद एक बार फिर प्रत्याशियों की संख्या छह पर ही पहुंच पाई है। आपातकाल लगने के बाद पहली दफा 1977 में चुनाव हुआ,जिसमें प्रत्याशियों की संख्या महज छह ही थी। इस दफा भी प्रत्याशियों की संख्या छह ही है। 1977 के चुनाव में देश भर में बदलाव की बयार चली और रामपुर से गैर कांग्रेसी प्रत्याशी ने जीत हासिल की।
उस वक्त भारतीय लोक दल के उम्मीदवार राजेंद्र शर्मा ने कांग्रेस के प्रत्याशी नवाब जुल्फिकार अली खां को पराजित कर दिया था। प्रत्याशियों की संख्या को लेकर जानकार बताते हैं कि 90 के दशक के बाद इतनी संख्या पहली बार कम रही है। प्रत्याशियों की कम संख्या होने के क्या परिणाम होंगे यह तो आने वाला वक्त ही बताएगा। फिलहाल चुनावी मैदान में 47 साल बाद छह खिलाड़ी अपनी किस्मत अजमा रहे हैं। देखना यह होगा कि इसमें किसके सिर पर ताज सजेगा और किसको जनता नकारेगी।