ब्यूरो रिपोर्ट… आमतौर पर सिगरेट पीने की आदत को फेफड़ों के कैंसर (Cancer) से जोड़कर देखा जाता है। लेकिन, हाल ही में लैंसेट में प्रकाशित एक नयी स्टडी में यह पाया गया है कि स्मोकिंग ना करने वाले लोगों में भी कैंसर (Cancer) का रिस्क हाई रहता है। WHO और इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर IARC की एक नयी स्टडी के अनुसार, धूम्रपान करने वालों और धूम्रपान न करने वालों दोनों में फेफड़ों के कैंसर के मामले बढ़ते जा रहे हैं।
इसमें धूम्रपान न करने वाले लोगों में वायु प्रदूषण के कारण कैंसर हो रहा हैं। यह काफी चिंताजनक बात हैं। पर्यावरण प्रदूषण के अलावा, इनडोर वायु गुणवत्ता, चयापचय संबंधी समस्याएं और कार्यस्थल विषाक्त पदार्थों Toxins जैसे कारकों ने भी धूम्रपान न करने वालों में फेफड़ों के कैंसर की घटनाओं को बढ़ा दिया है। 30 से 40 की उम्र के पुरुष और महिलाएं लगातार खांसी जैसी परेशानियों से परेशान रहते हैं जो कि लंग कैंसर का एक लक्षण है। यह समस्या उन लोगों में भी हो रही है जो धूम्रपान नहीं करते हैं।
युवाओं में भी तेजी से बढ़ रहा है फेफड़ों का कैंसर
फेफड़ों का कैंसर (Cancer) सबसे आम कैंसर है। यह तब होता है जब फेफड़ों में कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से विभाजित होती हैं, जिससे ट्यूमर होता है। फेफड़ों के कैंसर (Cancer) के बढ़ते मामले देश में चिंता का विषय बन रहा है क्योंकि यह लाखों लोगों की जान ले रहा है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) के शोधकर्ताओं ने बताया कि, भारत में 2025 तक फेफड़ों के कैंसर के मामलों में सात गुना से अधिक वृद्धि होने की संभावना है।
फेफड़ों का Cancer,
डॉ. समीर गार्डे ने कहा कि,”20 साल पहले, फेफड़े के कैंसर (Cancer)के अधिकांश मरीजों का धूम्रपान करने का इतिहास था। हालांकि, पिछले 10 से 12 वर्षों में धूम्रपान न करने वालों में भी कैंसर के मामले बढते दिखाई दे रहे हैं । पहले, फेफड़े के कैंसर से पीड़ित 10 में से 8 धूम्रपान करने वाले और 2 धूम्रपान न करने वाले होते थे। अब, फेफड़े के कैंसर(Cancer) से पीड़ित 10 में से 5 धूम्रपान करने वाले और 5 धूम्रपान न करने वाले हैं। इसलिए, हम धूम्रपान न करने वालों में भी फेफड़े के कैंसरके मामलों में चिंताजनक वृद्धि देख रहे हैं।
वायु प्रदूषण बना रहा फेफड़ों को कमजोर
धूम्रपान न करने वालों में फेफड़े के कैंसर (Cancer) में यह खतरनाक वृद्धि मुख्य रूप से इनडोर और आउटडोर प्रदूषण दोनों के लिए जिम्मेदार हो सकती है। मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरीय क्षेत्रों में वायु प्रदूषण फेफड़ों के कैंसर का कारण बन रहा हैं। अगरबत्ती, सुगंधित मोमबत्तियां और मच्छर भगाने वाली दवाएं जलाने से घर के अंदर वायु प्रदूषण बढ़ रहा है, जिससे क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) या ऑब्सट्रक्टिव एयरवेज डिजीज जैसी श्वसन संबंधी समस्याएं होती हैं।
इन बीमारियों से बढ़ता है लंग कैंसर
डायबिटीज , मोटापा और कसरत ना करने जैसे लाइफस्टाइल से जुड़ी स्थितियों और मेटाबॉलिक कंडीशन्स के कारण भी अप्रत्यक्ष रूप से फेफड़ों के कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी देखी जा रही है।
इस तरह का काम करने वालों में भी कैंसर का हाई रिस्क
इसी तरह किसी प्रकार की धातु या मेटल की काट-छांट का काम करने वाले लोगों या केमिकल्स से जुड़े काम करने वाले लोगों में भी सांस लेने से जुड़ी समस्याओं में बढ़ोतरी देखी जा रही है। ये कारण भी स्मोकिंग ना करने वाले लोगों में फेफड़ों के कैंसर का खतराबढ़ाते हैं।