ब्यूरो रिपोर्टः 24 के चुनान का आगाज हो चुका है, अब सीटों को लेकर हलचल तेज हो गई, यूपी में इंडिया गठबंधन में सपा और रालोद दो प्रमुख दल है, ऐसे में सभी की नजरे सीटों के बटबारे पर टीकी है. कि दोनो ही दलों में सीटों का बंटवारा कैसे होगा, अब ऐसे में पश्चिमी यूपी की एक सीट को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है. और वो है मुजफ्फरनगर सीट सपा या रालोद किसके हिस्से में जाएगी मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट? ये सवाल सियासी गलियारो में लगातार गोते खा रही है. इसी को लेकर जब जयंत चौधरी से सवाल किया गया तो जयंत चौधरी ने क्या जवाब दिया वो भी आपको बताते है।
दरअसल मुजफ्फरनगर पहुंचे जयंत चौधरी से जब ये सवाल किया गया तो उन्होने कहा कि लोकसभा चुनाव के लिए गठबंधन के बीच अभी मुजफ्फरनगर सीट को लेकर कोई फैसला नहीं हुआ है। अभी समय है और सहमति के आधार पर ही चीजें आगे बढ़ेंगी। पहले आप बयान सुनिए फिर इस सीट को लेकर भी चर्चा केरेंगे. और इस सीट के इतिहास को भी जानएंगे, मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट सियासी उठापटक के लिए हमेशा महत्वपूर्ण मानी जाती रही है। इस सीट पर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह और केंद्रीय मंत्री रहे चौधरी अजीत सिंह जैसे जाट नेता भी परास्त हो चुके हैं।
चौधरी चरण सिंह 1971 में जब लोकसभा चुनाव हारे तब तक वह देश के प्रधानमंत्री तो नहीं बने थे, लेकिन प्रदेश के 2 बार मुख्यमंत्री रह चुके थे। अजीत सिंह 2013 दंगे से पैदा हुई सांप्रदायिक गरमाहट को दबाने की बात कहते हुए 2019 में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़े थे, लेकिन वह भी हार गए थे। चौधरी चरण सिंह ने 1971 में मुजफ्फरनगर सीट से पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ा था। तब लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ का नारा दिया था, लेकिन संपूर्ण विपक्ष इंदिरा हटाओ का नारा लगा रहा था। 1971 में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से चौधरी चरण सिंह की हार में दो स्थानीय गुर्जर नेताओं नारायण सिंह और हुकम सिंह की भूमिका अहम मानी जाती है।
खतौली सीट से उस समय बीकेडी विधायक वीरेंद्र वर्मा थे, उन पर भितरघात का आरोप लगा था। इसके बाद वीरेंद्र वर्मा बीकेडी छोड़कर कांग्रेस में चले गए थे। 2013 में मुजफ्फरनगर में सांप्रदायिक दंगा हुआ था। दंगे के बाद जिले की सियासत भाजपा के इर्द-गिर्द घूमने लगी थी। बदले सियासी हालात और सांप्रदायिक उन्माद को शांत करने की बात कहते हुए चौधरी अजीत सिंह ने 2019 में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा की थी। मुजफ्फरनगर सीट पर भाजपा ने एक बार फिर डॉ. संजीव बालियान पर दांव लगाया।
सपा-रालोद ने गठबंधन प्रत्याशी के तौर से चौधरी अजीत सिंह को चुनाव में उतारते हुए प्रचारित किया कि यह उनका आखिरी चुनाव है। मुकाबला कांटे का हुआ। हालांकि इसके बाद भी चौधरी अजीत सिंह भाजपा के डॉ. संजीव बालियान से करीब 6,500 वोट से हार गए.. पश्चिमी यूपी का मुजफ्फरनगर राजनीति के केंद्र बिंदु में रहता है. 24 में इस सीट को लेकर जयंत और अखिलेश में महासंग्राम हो सकता है।
निकाय चुनाव में जयंत और अखिलेश में कई सीटों पर तकरार रही और इसके बाद आए नतीजे सबके सामने हैं. 2014 में मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से ही पश्चिमी यूपी का सियासी समीकरण बीजेपी के पक्ष में और आरएलडी के खिलाफ आया था. जयंत इसी मुजफ्फरनगर से 2024 में नई संजीवनी तलाश रहें हैं, लेकिन ऐसे में अब देखना होगा कि अखिलेश और जयंत चौधरी मिलकर क्या फैसला लेंगे ।