लोकसभा चुनाव में आधी-अधूरी जीत के साथ से आहत भारतीय जनता पार्टी में इन हालात के लिए मंथन का दौर जारी है तो हरियाणा में 10 साल की सत्ता को गंवाने का डर भी कुछ कम नहीं है। Political Analysis में यह बात भी अहम हो जाती है कि देश के सात राज्यों में 13 विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के नतीजे ने अब इस डर को और बढ़ा दिया है। इस बात में कोई दो राय नहीं कि हरियाणा में विधानसभा चुनाव स्थानीय मुद्दों पर ही केंद्रित रहेगा। राज्य की जनता भाजपा के शासन को अपनी कसौटी पर तोलने में लगी हुई है। ध्यान होगा 2014 में पार्टी राज्य में पूर्ण बहुमत में थी और 2019 में जुगाड़ू सरकार बनानी पड़ी। इसकी वजह पर जाएं तो बहुत सारे मुद्दे हैं, जिनको आधार बनाकर लगभग पौने 10 साल से प्रदेश की सत्ता पर काबिज भाजपा भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाले कांग्रेस के पूर्व शासन को कोसती रही, अब भाजपा को खुद आंकलन करना पड़ रहा है कि उन मुद्दों के स्थायी समाधान को लेकर इसने खुद ने क्या किया। यह अपने आप में बड़ा सवाल है कि अगर हरियाणा के वोटर का मूड थोड़ा सा भी स्विंग हुआ तो भाजपा के भविष्य का क्या होगा?
ये हैं हरियाणा में बड़े राजनैतिक मुद्दे
सबसे बड़ा मसला बेरोजगारी का है। हाल ही में सामने आई सैंटर फॉर मानिटरिंग इंडियन इकोनॉमी की एक रिपोर्ट बताती है कि 35.7 प्रशिशत बेरोजगारी के साथ हरियाणा देश में सबसे ऊपर है। हालांकि सत्ता का सुख भोग रहे लोग इस रिपोर्ट को गलत बताने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं, पर अगर हकीकत पर गौर किया जाए तो इन लोगों के पास खुद इस रिपोर्ट को गलत साबित करने के लिए आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। कुछ वक्त पहले हरियाणा सरकार ने राज्य में लगभग 6 लाख लोगों के बेरोजगार होने का अनुमान लगाया था, एक बड़ी सच्चाई यह भी है है कि ग्रुप-सी और डी की नौकरियों के लिए कॉमन एलिजिबिलिटी टैस्ट के लिए अब तक 7.95 लाख युवाओं का रजिस्ट्रेशन हो चुका है। अगर 6 लाख बेरोजगार थे तो फिर ये 1 लाख 95 हजार और कहां से आ गए? रोजगार पोर्टल पर 8,68,584 युवाओं का रजिस्ट्रेशन है तो सक्षम युवा रोजगार योजना में भी 3,87,871 रजिस्ट्रेशन हैं। इसके उलट राज्य में 2 लाख नियमित पद सरकारी नौकरियों में खाली पड़े हैं। उच्च शिक्षा पर नए संस्थान बनाने की कोई पहल हुई नहीं। 58% पद प्रदेश के कॉलेजों में खली पड़े हैं।
लघु और मध्यम उद्योग संकट से गुजर रहे हैं। विदेशी निवेश के बड़े-बड़े दावों के बावजूद कई बड़े उद्योग व परियोजनाएं प्रदेश में स्थापित नहीं हुए, जो रोजगार की समस्या को कोई राहत दे पाते। 2014 में हरियाणा सरकार ने विदेशी व्यापारिक संस्थानों के लिए गुरुग्राम में एक बड़ा आयोजन किया था, जिसमें 2 लाख करोड़ के एमओयू के साथ प्रदेश के युवाओं को नौकरी देने का दावा किया गया था। पता नहीं यह दावा कौन से कोने में धूल फांक रहा है?
डबल इंजन वाली इस सरकार की नीतियों की मार किसान वर्ग पर भी पड़ी है। सबसे पहले तो स्वामीनाथन रिपोर्ट के अनुसार फसलों के मूल्य तय करने और पूरी फसल खरीदने का कोई मजबूत प्रावधान नहीं हो पाया है। दूसरा तीन कृषि संवर्धन कानून किसानों को आंदोलन की राह पर लाने वाले फसल बीमा योजना में मुआवजे में देरी, प्राकृतिक आपदाओं के समुचित मुआवजे समय पर नहीं मिलने, बीज खाद, डीजल-पैट्रोल की महंगाई, चुनिंदा कृषि यंत्रों के जीएसटी के दायरे में आने की वजह से कृषि उत्पादन की लागत के बढ़ने से किसानों की आय घटी है और यह प्रदेश में भाजपा विरोधी माहौल बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। इतना ही नहीं, किसानों की कर्जमाफ़ी को लेकर भी कोई गंभीर पहल नहीं हुई, जबकि इसके उलट बड़े उद्योगों के कर्ज सरकार धड़ाधड़ माफ कर रही है। ‘मेरी फसल मेरा ब्यौरा’ के चक्रव्यूह में तो किसान ऐसे उलझे हैं कि निकलने का कोई रास्ता ही नहीं सूझ रहा।
डीजल पर वैट 8.9% बढ़ाकर 17.6% कर दिए जाने से यातायात महंगा हुआ है। गैस के सिलेंडर की कीमतों ने भी लोगों की रसोई का बजट बिगाड़ रखा है। लोग खुले तौर पर कह रहे हैं कि जब राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में साढ़े 4 सौ रुपए में सिलेंडर मिल सकता है तो फिर हरियाणा के लोगों को क्यों नहीं?
समाज का कमजोर वर्ग भेदभाव से जूझ रहा है। 5 हजार के करीब स्कूल बंद कर दिए जाने से आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग अपने बच्चों को मौलिक शिक्षा दिलाने में भी नाकाम है। क्रीमी लेयर को 8 लाख से घटाकर 6 लाख करना, पैंशन के वादे को पूरा न करना, परिवार पहचान पत्र की उलझनें भी जनता को नाराज कर रही हैं। महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा में कमी है। यौन शोषण के खिलाफ प्रदर्शन कर रही महिला पहलवानों पर हुए बलप्रयोग की वजह से भी प्रदेश की जनता हरियाणा की भाजपा सरकार से नाराज है।
इन सबके बावजूद हरियाणा की भाजपा सरकार भ्रष्टाचार पर बड़े-बड़े दावे तो जरूर करती रही, मगर जब फरीदाबाद नगर निगम घोटाले, कोरोना काल में शराब घोटाले, रजिस्ट्री घोटाले, छात्रवृत्ति घोटाले, गांव में बनने वाले अमृत सरोवर घोटाले और प्रतियोगी परीक्षाओं की विसंगतियों पर ध्यान जाता है तो सरकार के दावे खोखले हैं, यह साफ नजर आता है। कुल मिलाकर ऐसे ही न जाने कितने मुद्दे इस विधानसभा चुनाव में सीधा असर डालेंगे।
विपक्ष बना रहा भाजपा को घेरने का मास्टरप्लान
तमाम राजनैतिक और सामाजिक मुद्दों को आधार बनाकर कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, इंडियन नैशनल लोकदल और भाजपा के विरोध पर 90 में से 10 सीटें जीतकर साढ़े चार साल भाजपा का साथ निभाने वाली जननायक जनता पार्टी भाजपा को घेरने में कोई कसर नहीं छोड़ेंगी। यह अलग बात है कि भाजपा के एक मंत्री कांग्रेस का किला मजबूत करने निकले रोहतक के सांसद दीपेंद्र हुड्डा को अपना जिगरी दोस्त बता रहे हैं, पर सोचने वाली बात है कि इश्क और जंग में सब जायज होता है तो राजनैतिक जंग में क्या इस दोस्ती को साइड पर नहीं रख दिया जाएगा। अब देखने वाली बात यह होगी कि भाजपा इन हालात से आखिर निपटेगी कैसे? इसके लिए किस तरह की रणनीति अपनाई जाएगी?